Friday, August 1, 2008

आलेख

तेलुगु भाषा एवं साहित्य
अंतर्जाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया जा रहा है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डाल रहे हैं । इस क्रम में प्रथम लेख यहाँ प्रस्तुत है । - सं.
तेलुगु भाषा का परिचय
- उप्पलधडियम वेंकटेश्वर
भारत में हिंदी के बाद सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा है तेलुगु । तेलुगु भाषा का मुख्य क्षेत्र है आंध्र प्रदेश, जो उत्तर एवं दक्षिण भारत का संगम स्थान है । फलतः तेलुगु को राष्ट्र के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सेतु होने का श्रेय प्राप्त हुआ है । प्रख्यात भाषाविद् डॉ. होमफील्ड मेकलोइड (Dr. Homefield McLeoed) का कहना है कि – “Telugu can be looked upon as the northernmost member of the southern languages or the southern most member of the northern languages and it has the advantage of both groups with few, if any, of the defects. It is adaptable, dynamic, absorptive, grammatically simple and euphonically beautiful even when using foreign words. It has never suffered from narrow provincialism.”

तेलुगु एवं संस्कृत के प्रकांड पंडित स्वर्गीय पिंगलि लक्ष्मीकांतम के शब्दों में “आंध्र-भूमि, आर्य-द्रविड़ विज्ञान की परंपराओं का संगम स्थान है.. ऐसी समरसता किसी अन्य क्षेत्र में संभव न हो सका ।” वे आगे कहते हैं कि “आर्य और द्रविड़ जैसे परस्पर भिन्न भाषा परिवारों में समरसता स्थापित करने के कारण तेलुगु में ऐसे अनेक गुण दीख पड़ते हैं, जो उपर्युक्त दोनों भाषा परिवारों की अन्य भाषाओं में नहीं है । अन्यथा वह – देश की भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ भाषा- कैसे हो पाती? ” (16 वीं सदी के सम्राट श्रीकृष्ण देवरायलु ने कहा था - “देश की भाषाओं में तेलुगु सर्वश्रेष्ठ भाषा है ।”
तेलुगु द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है । द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषा होने पर भी तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर संस्कृत की अमिट छाप परिलक्षित है । तेलुगु-अंग्रेज़ी कोश (सन् 1852) के प्राक्कथन में उसके निर्माता सी.पी. ब्राउन ने लिखा है कि “It is in reality hardly possible to write a sentence of ordinary Telugu, without using a Sanskrit word in it.” तेलुगु के प्रख्यात् आलोचक स्व. निडदवोलु वेंकटरावु की राय है कि “भारतीय भाषाओं में संस्कृत को पूर्ण रूप से आत्मसात करनेवाली एकमात्र भाषा है तेलुगु ।” प्रख्यात भाषाविद् स्व. रामभट्ल कृष्णमूर्ति की धारणा है कि “संस्कृत के शब्द जितनी सहजता से तेलुगु में घुलमिल जाते हैं, उतनी सहजता से किसी दूसरी भाषा में शामिल नहीं हो पाते हैं ।” स्व. पिंगलि लक्ष्मीकांतम का कहना है कि “द्रविड़ भाषा परिवार की तेलुगु ने संस्कृत के साथ मित्रता निभाई । उसने संस्कृत की कटुता न लेकर केवल गंभीरता एवं माधुर्य को अपनाया और अपनी सहज सुकुमारता में चार चाँद लगा दिए । उच्च कोटि के पुष्पों को चुनकर बनाई गई माला है तेलुगु ।” निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि तेलुगु पर संस्कृत का गहरा प्रभाव होने पर भी तेलुगु ने अपनापन बनाए रखने में सफल रहा ।
आंध्र प्रदेश के दक्षिण में तमिलनाडु, पश्चिम में कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा पूर्वोत्तर में उड़ीसा राज्यों के स्थित होने के कारण तेलुगु भाषा पर तमिल, कन्नड, मराठी और उडिया भाषाओं का भी प्रभाव रहा है । ऐतिहासिक कारणों से प्राकृत, उर्दू और अंग्रज़ी के सैकडों शब्द तेलुगु भाषा में पाए जाते हैं । अन्य भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करने में तेलुगु की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए स्व. रांभट्ल कृष्णमूर्ति ने कहा कि “तेलुगु भाषा, गंगाजल की तरह, यूनिवर्सल साल्वेंट है । वह किसी भी भाषा के शब्द को समेट लेती है और उसे अपना रूप दे देती है ।”
तेलुगु भाषा के संबंध में यह बात उल्लेखनीय है कि इसके कई नाम हैं । ‘आंध्र’ शब्द तेलुगु का पर्यायवाची है । तेलुगु का प्रथम महाकाव्य ‘आंध्र महाभारतमु’ के प्रणेता नन्नय (11 वीं सदी) ने संज्ञा के रूप में ‘तेलुगु’ और ‘आंध्र’ दोनों शब्दों का प्रयोग किया । तेलुगु के स्थान पर कहीं कहीं ‘तेनुगु’ शब्द का प्रयोग किया जाता है । इन शब्दों के साथ पूर्णबिंदु लगाकर ‘तेलुंगु’ (తెలుంగు) और ‘तेनुंगु’ (తెనుంగు) शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है । (इनके अलावा अर्धबिंदु लगाकर तेलुगु తెలుఁగు और तेनुगु తెనుఁగు के जो रूप तेलुगु लिपि में लिखे जाते हैं, उन्हें देवनागरी लिपि में देना संभव नहीं है ।) प्राचीन तमिल साहित्य में तेलुगु के लिए ‘वडुगु’ शब्द का प्रयोग मिलता है। पुर्तुगल के लोगों ने तेलुगु के लिए ‘जेंटू’ शब्द का प्रयोग किया है । विलियम ब्रौन नामक विद्वान ने अपने तेलुगु व्याकरण ग्रंथ को ‘ए ग्रामर ऑफ द जेंटू लैग्वेज़’ नाम से प्रकाशित किया । जर्मन के विद्वानों ने ‘वरुगिक’ के नाम से तेलुगु का उल्लेख किया । उपर्युक्त शब्दों में तेलुगु और आंध्र दोनों रूप अत्यंत प्रचलित हैं ।
अपनी भाषा सबको अच्छी लगती है । लेकिन तेलुगु भाषा इतना कर्ण मधुर है कि पर-भाषी भी इसकी मिठास पर मुक्त हो जाते हैं । तमिलभाषी एवं प्रख्यात संस्कृत विद्वान अप्पय्य दीक्षित (16वीं सदी) ने कहा कि “आंध्रत्वम् आंध्र भाषाच नाल्पस्य तपसः फलम्” । अर्थात् आंध्र बनकर पैदा होना और आंध्र भाषा बोल पाना महान तपस्या का ही फल हो सकता है । पश्चिम के विद्वान निकोलाय कैंटी ने ‘इटालियन ऑफ द ईस्ट’ (पूर्व की इतालवी) कहकर तेलुगु की प्रशंसा की । हेनरी मोरिस नामक विद्वान का कहना है कि द्रविड़ भाषाओं में तेलुगु जितना मधुर है उतना और कोई भाषा नहीं । उन्होंने यह भी कहा कि अपढ़ लोगों की जुबान में उसकी मिठास पाई जाती है । प्रख्यात् वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन का कहना है कि वैज्ञानिक विषयों की अभिव्यक्ति के लिए तेलुगु अत्यंत उपयुक्त है । सन् 1812 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘तेलिंगा ग्रामर’ (Telinga Grammar) में डॉ. क्यारी (Carey) ने तेलुगु के बारे में अपना मत प्रकट किया कि “Telugu must be numbered with those languages which are the most worthy of cultivation, its variety of inflection being such as to give it a capacity of expressing ideas, with a high degree of facilities, justness and elegance.” तमिल के यशस्वी कवि सुब्रमण्य भारती ने ‘सुंदर तेलुंगु’ कहकर इसकी प्रशंसा की । यहाँ इस तथ्य को रेखांकित करना अप्रासंगिक न होगा कि दक्षिण भारत की संगीत रीती कर्नाटक संगीत में तेलुगु के पद साहित्य का बोलबाला है । इसीलिए प्रख्यात् संगीतज्ञ श्री जे. वैद्यनाथन कहते हैं कि “Carnatic musicians should reserve some energy to learn Telugu and Sanskrit.”
जाहिर है कि स्वयं तेलुगु भाषी अपनी सुमधुर भाषा पर नाज़ करते हैं । भारत के इतिहास में 16वीं सदी के सम्राट श्रीकृष्ण देवरायलु का विशेष स्थान है । वे सम्राट ही नहीं, बल्कि उच्चकोटि के कवि भी थे । वे धार्मिक और भाषाई संकीर्णताओं से परे थे । उन्होंने अपने दरबार में तेलुगु, संस्कृत, तमिल, कन्नड आदि अनेक भाषाओं के कवियों का आदर किया और अपनी तेलुगु रचना ‘आमुक्तमाल्यद’ (जो तेलुगु के पंचमहाकाव्यों में से एक है) में तमिल कवयित्री आंडाल के जीवन का चित्रण किया । ऐसी उदार मानसिकता के इस बहुभाषाविद् का मानना है कि ‘देश भाष लंदु तेलुगु लेस्स’ (अर्थात् देश की भाषाओं में तेलुगु सर्वश्रेष्ठ है) । ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विश्वनाथ सत्यनारयण का कहना है कि जिस भाषा के बोलने मात्र से गायन का आभास होता है, वह भाषा है तेलुगु ।
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