Tuesday, November 18, 2008

तेलुगु भाषा एवं साहित्य

तेलुगु भाषा एवं साहित्य


अंतरजाल पर तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर हिंदी में अपेक्षित मात्रा में सामग्री उपलब्ध न होने के कारण अपने पाठकों के लिए युग मानस की ओर से तेलुगु भाषा एवं साहित्य पर धारावाहिक लेखमाला का प्रकाशन आरंभ किया गया है । तेलुगु के युवा कवि उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा अपने लेखों के माध्यम से तेलुगु भाषा एवं साहित्य के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए धारावाहिक लिख रहे हैं । इस क्रम में 1, 2, 3 के बाद अब चौथा किस्त यहाँ प्रस्तुत है । - सं.

तेलुगु भाषा की प्राचीनता
(गतांक से जारी)

- उप्पलधडियम वेंकटेश्वरा, चेन्नै ।



संस्कृत साहित्य में अनेक ग्रंथों में तेलुगु-प्रजाति और तेलुगु भाषा का उल्लेख मिलता है ।

(i) प्राचीन संस्कृत साहित्य में, दक्षिण भारत की प्रजातियों में से आंध्र-प्रजाति का उल्लेख ही प्राचीनतम है ।


(ii) संस्कृत साहित्य में तेलुगु प्रजाति का सर्वप्रथम उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण (ई.पू.छठी शताब्दी) में मिलता है । महर्षि विश्वामित्र के पुत्र, शुनश्शेप को अपने बड़ा भाई मानने से इनकार कर देते हैं तो कुपित होकर विश्वामित्र उन्हें आंध्र, पुंड्र, शबर इत्यादि दस्युओं में शामिल हो जाने का शाप देते हैं ।

तस्यह विश्वामित्र स्यैकशतम् पुत्रा आसु:
पंचाशत् एक ज्यायांसो मधुच्चंदस:
पंचाशत् कनीयांस: तद्वैज्यायांसो नते कुलम् मेतिरे
तान् अनुयाजहारन् तान् व: प्रजाभिक्षिस्तेति त
एतेन्ध्रा: पुंड्रा शबरा: पुलिंदा मूतिबा इत्युदंत्या

बहवो भवंति वैश्वामित्रा दस्यूनाम् भूयिष्ठा :

(ऐतरेय ब्राह्मण, तृतीय अध्याय, पांचवा खंड)

(iii) वाल्मीकि रामायण में किष्किंधाकांड में आंध्र-प्रांत का उल्लेख है । सुग्रीव सीताजी की खोज में अपनी वानर-सेना को दक्षिण की ओर भेजते हुए उसको निर्देश देते हैं कि आंध्र, पुंड्र इत्यादि प्रांतों में जाकर खोजें ।


. . . .अन्वीक्ष्य दण्डाकारण्यम् सपर्वत नदी गुहम्
नदीम् गोदावरीम् चैव सर्वमेवानु पश्वत
तथैव आंध्रांश्च . . . .


iv) महाभारते के 'आदि पर्व' में बताया गया कि द्रौपदी के स्वयंवर में अंधक भी शामिल हुए ।


हलायुध स्तत्र जनार्दनश्च
वृष्ण्यंधका श्चैव यथा प्रधानम्
प्रेक्षाम् स्मचक्रुर्यदुपुंगवास्ते
स्थिताश्च कृष्णस्य मते महांत:


v) महाभारत के सभापर्व में बताया गया कि युधिष्ठिर की मयसभा में अन्य
राजाओं के साथ आंध्र-नरेश भी शामिल थे ।


तथांग वंगौ सह पुंड्रकेण
पांडयोढ्र राजौच सह आंध्रकेण

(सभापर्व, चतुर्थ अध्याय, श्लोक सं.24)

vi) महाभारत में यह भी बताया गया कि दक्षिण की विजय-यात्रा के दौरान सहदेव ने आंध्र के राजा को पराजित किया ।


. . . . आंध्रांम् स्तालवनांश्चैव कलिंगा नुष्ट्र कर्णिकान्


vii) शांति पर्व में युधिष्ठिर को विभिन्न जातियों का बोध करते हुए भीष्म पितामह कहते हैं कि दक्षिण की प्रजातियों में आंध्रक-प्रजाति भी एक हैं ।

दक्षिणापथ जन्मान: सर्वे नरवरांध्रक :
गुहा: पुलिंदा: शबरश्चुचुका मद्रकैस्सह

viii) भागवत पुराण में इस बात का उल्लेख है कि किरात, हूण, आंध्र, पुलिंद इत्यादि प्रजातियों की जनता ने अपने-अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान विष्णु की प्रार्थना की ।

किरात हूणांध्र पुलिंद पुल्कसा . . . .
तस्मै प्रभविष्णवे नम :

(श्रीमत् भागवत्, द्वितीय स्कंध, 14 वां अध्याय, श्लोक सं.18)

ix) भागवत पुराण में यह भी बताया गया कि राजा बलि के छ: पुत्रों ने अपने-अपने नाम से साम्रज्य की स्थापना की, जिनमें से 'आंध्र' नामक पुत्र द्वारा आंध्र-साम्राज्य की स्थापना की गई ।

अंग वंग कलिंगांध्र सिंह पुंड्रांध्र संक्षिका:
जिज्ञिरे दीर्घ तपसो बले: क्षेत्रे महीक्षित:
चकु स्स्वनान्नू विषयान् षडिमान् प्राच्चयगांश्चते

(भागवत पुराण, नवम स्कंध, 23 वां अध्याय, श्लोक सं.6)

x) मनुस्मृति में बताया गया कि आंध्र की जनता कारवार स्त्री और वैदेह की संतान है ।

कारावरो निषादात्तु चर्मकार: प्रसूयते
वैदेहिका दंध्र मेदौ बहिर्गामृ प्रतिश्चयौ

(मनुस्मृति, 10 वां अध्याय, श्लोक सं. 30)

xi) सम्राट अशोक के शिलालेखों में आंध्र-जनता की प्रशंसा मिलती है ।

एवमेव इहराज विषयेषु यवन कंभोजेषु
नाभके नाभ पंक्तिषु, भोजपति निवयेषु
अंध्र पुलिन्देषु सर्वत्र देवानां प्रियस्य
धर्मानुशिष्ठि मनुवर्तने ।

xii) इसके अलावा मत्स्य पुराण, वायु पुराण, ब्रहम् पुराण आदि ग्रंथों में जाति वाचक संज्ञा के रूप में अंध्र, आंध्र, अंधक और आंध्रक शब्दों का प्रयोग मिलता है । ये शब्द एक ही प्रजाति को सूचित करते हैं ।

xiii) प्राचीन द्रविड़ भाषाओं में से तेलुगु भाषा ही संस्कृत के साथ अधिक निकटता रखती है । भाषाविद डॉ. जी.वी. पूर्णचंद मानते हैं कि तेलुगु और संस्कृत भाषाओं के बीच के गहरे संबंध हज़ारों वर्ष पूर्व स्थापित हुए थे, जो तेलुगु भाषा की प्राचीनता का प्रमाण है । संस्कृत और तेलुगु भाषाओं की आपसी घनिष्ठता और सादृश्य को डॉ. भोलानाथ तिवारी के इन शब्दों के आलोक में परखना उपयुक्त होगा कि जिस समय संस्कृत का व्यापक प्रयोग हो रहा था, मध्य प्रदेश की संस्कृत की मानक और अनुकरणीय मानी जाती थी (राजभाषा हिंदी , पृ.66), क्योंकि आंध्र-भूमि मध्य प्रदेश के निकट स्थित है ।

इन तमाम आधारों से तेलुगु भाषा की प्राचीनता प्रमाणित है ।

तेलुगु के कई महत्वपूर्ण आयामों में इसी स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित होनेवाले धारावाहित लेखों के माध्यम से आप नियमित रूप से पढ़ सकते हैं ।

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1 comment:

Sherfraz said...

On vast presentation about Telugu litratire is highly usefull and it is a mirror for the language. Presentation by editor is exeplary this is very usefull for the non telugus. wish u all sucess. and expecting many more pennings from your sharp-edge.