Tuesday, December 9, 2008

कविता



प्‍यार एक खेल नहीं!


- डी. अर्चना, चेन्‍नै


मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम “एम .ए” फर्स्‍ट डिविजन हो,
मैं हुआ “मैट्रिक” फेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम फौजी अफ़सर की बेटी,
मैं तो किसान का बेटा हॅू।
तुम ‘ए.सी’ घर में रहती हो,
मैं झोंपडी में रहता हूं।
तुम नयी मारूती लगती हो,
मैं पुराना स्‍कूटर लगता हॅू।
इस तरह अगर हम छुप छुप कर
आपस में आंखें मिलाते तो,
एक रोज़ तेरे पप्‍पा अमरेशपूरी बनकर,
हड्डी फसली एक कर जेल भेंजेंगे प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
अब नज़ारों का मेल
सांसों का यह जंतर मंतर
हमेशा केलिए अलबिदा प्रिये।

1 comment:

Sherfraz said...

The poetey enchanting humour in the daily lifestyle.

Pahle Padai karo priye.
Aur naukri badi kamao priye.
Dooriyan saari miten priye.
Phir Pyar ka khel khalo priye.

Shubh prem praptirastu. Ha.. Ha..