Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष मंगलमय हो

युग मानस के पाठकों एवं लेखकों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ ।

आया नव वर्ष आया

- विजय कुमार सप्पाटि, हैदराबाद

आया नव वर्ष, आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक, बार बार !

बीते बरस की बातों को, दे बिसार
लेकर आया है ये, खुशियाँ और प्यार !
खुले बाहों से स्वागत कर, इसका यार
और मान, अपने ईश्वर का आभार !

आओ, कुछ नया संकल्प करें यार
मिटायें, आपसी बैर, भेदभाव, यार !
लोगो में बाटें, दोस्ती का उपहार
और दिलो में भरे, बस प्यार ही प्यार !

अपने घर, समाज, और देश से करें प्यार
हम सब एक है, ये दुनिया को बता दे यार !
कोई नया हूनर, आओ सीखें यार
जमाने को बता दे, हम क्या है यार !

आप सबको है विजय का प्यारा सा नमस्कार
नव वर्ष मंगलमय हो, यही है मेरी कामना यार !

आया नव वर्ष, आया आपके द्वार
दे रहा है ये दस्तक, बार बार !

मुबारक हो सब को नया साल

डा. एस बशीर,चेन्‍नै

नव वर्ष का, नव हर्ष का
उत्‍कर्ष का, सौहार्द्र का
स्‍वागतम…… सुस्‍वागतम।
बीत गया जो साल पुराना
वेदना, क्रंदन, तूफान व आतंक का
खून व आसूं भरे दास्‍तान का।
नये साल में कहीं न हो अकाल
दंगे व फसादों से न कोई हो बेहाल
इनसानियत के जज़्बात से सब हो माल।
मुबारक ये नया साल।
दीप जले, चाँद सूरज चमके
दसों-दिशाओं में रोशनी फैलें
फूल खिलें, चंदन महकें
विश्‍व के चमन में, अमन की,फि़ज़ा रहें
चेहरों पर निखार, आंखों में रोशनी ।
दिल में उमंग – होठों पर सदा मुस्‍कान रहें
धर्म सभी, मानवता मिसाल बतायें
प्रीत के, रीत के, गीत सदा गुन गुनायें
दुवा है ये दोस्‍त की..........
खुदा आमीन करें..........
जीवन की गरिमा को
हर मन की मुरादे को
सदा सरताज़ रखें।

Monday, December 15, 2008

अजय मलिक की दो कविताएँ


मैं काँटों को भी दर्द का अहसास कराना चाहता हूँ...

मैं काँटे बोता हूँ
अंकुरित होने पर
खूब सींचता हूँ
उग आने पर
चाव से उनपर चलता हूँ
और फ़िर से सींचता हूँ
काँटों की प्यास बुझने पर
मुस्कराते हुए मैं
अपने रक्त रंजित पैरों के
ज़ख्मों को सहलाता हूँ
एक-एक कर सारे काँटों को
संभालकर निकालता हूँ
मरहम लगाने से मुझे भी
चैन मिलता है मगर
काँटों को बुरा लगता है
पाँव ठीक होने पर मैं
फ़िर से कांटे बोता हूँ
फ़िर से वही सब दोहराता हूँ
हर बार मेरे पांवों से
रक्त बह जाता है
दर्द रह जाता है
पता नहीं काँटों को
खून में मिले दर्द को पीने में
मज़ा क्यूं नहीं आता, पर
मैं काँटों को भी दर्द का अहसास कराना चाहता हूँ ।


*****


नहीं गीत में गीत...

नहीं गीत में गीत बचा
नहीं ताल में ताल कहीं
न सुर में संगीत शेष है
न लय न झंकार कहीं

बादल में न बूँद शेष है
नहीं बचा है वेग पवन में
क्या सीपी की आस बचे, जहँ
धूल-धुँध भर, भरी गगन में

कहाँ गए सब बाग़ बगीचे
कहाँ ‘व’ दूब की हरियाली
कहाँ झील सी आँख मिले, जब
होठों तक न बची लाली

सरकारी पानी के नल हैं
पनघट कहाँ, कहाँ अब नीर
कैफ़े की यहाँ केक पेस्ट्री
सपना बनी अमावसी खीर

पार्क बन गए ‘उपवन’ सारे
महक रहे मलबे के ढेर
खेत बने बंगलों के गमले
माटी बिकी रूपए की सेर

पेशे से है यहाँ मित्रता
अर्थ नहीं कुछ मुस्कानों का
नहीं जानते ! शहर यह है
पत्थर के बुत इंसानों का ।

*****

Thursday, December 11, 2008

दिव्या माथुर की तीन कविताएँ

आरोप

झोंपड़े की
झिर्रियों से
झर के आते झूठ
ख़सरे से फैलने लगे

बदन पर मेरे

कितने छिद्रों को बंद करती
केवल अपने दो हाथों से

सच को सीने में छिपा
मैं जलती चिता पर
बैठ गई न रहीं झिर्रियाँ
न झोंपड़ान ही झूठ!


आशंका

मेरी मुंडेर पर कौआ रोज़ रोज़
काँव काँव करता है

कमब्ख़त कितना झूठ बोलता है

और काली बिल्ली

जब तब रास्ता काट जाती है
आशंका के विपरीत
कुछ नहीं होता!

सती हो गया सच

तुम्हारे छोटे, मँझले
और बड़े झूठ
खौलते रहते थे मन में
दूध पर मलाई सा
मैं जीवन भर
ढकती रही उन्हें

पर आज उफ़न के
गिरते तुम्हारे झूठ
मेरे सच को
दरकिनार गए
मेरी ओट लिए
तुम साधु बने खड़े रहे
और झूठ की चिता पर
सती हो गया सच!

Tuesday, December 9, 2008

कविता



प्‍यार एक खेल नहीं!


- डी. अर्चना, चेन्‍नै


मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम “एम .ए” फर्स्‍ट डिविजन हो,
मैं हुआ “मैट्रिक” फेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम फौजी अफ़सर की बेटी,
मैं तो किसान का बेटा हॅू।
तुम ‘ए.सी’ घर में रहती हो,
मैं झोंपडी में रहता हूं।
तुम नयी मारूती लगती हो,
मैं पुराना स्‍कूटर लगता हॅू।
इस तरह अगर हम छुप छुप कर
आपस में आंखें मिलाते तो,
एक रोज़ तेरे पप्‍पा अमरेशपूरी बनकर,
हड्डी फसली एक कर जेल भेंजेंगे प्रिये।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,
यह प्‍यार नहीं है खेल प्रिये।
अब नज़ारों का मेल
सांसों का यह जंतर मंतर
हमेशा केलिए अलबिदा प्रिये।

Sunday, December 7, 2008

विजय कुमार सप्पट्टि की तीन कविताएँ


विजय कुमार सप्पट्टि की कविताएँ



(कविता लेखन, चित्र-लेखन, फ़ोटोग्रफी, अध्यात्म आदि में विशेष रुचि रखने वाले श्री विजय कुमार सप्पट्टि सिकंदराबाद में वरिष्ठ महाप्रबंधक (विपणन) के रूप में कार्यरत हैं । विजय कुमार जी की तीन कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं । इन कविताओं पर प्रतिक्रियाओं का स्वागत है । - सं.)

सिलवटों की सिहरन

अक्सर तेरा साया
एक अनजानी धुंध से चुपचाप चला आता है
और मेरी मन की चादर में सिलवटे बना जाता है ...

मेरे हाथ, मेरे दिल की तरह
कांपते हैं, जब मैं
उन सिलवटों को अपने भीतर समेटती हूँ ...

तेरा साया मुस्कराता है और मुझे उस जगह छू जाता है
जहाँ तुमने कई बरस पहले मुझे छुआ था,
मैं सिहर सिहर जाती हूँ, कोई अजनबी बनकर तुम आते हो
और मेरी खामोशी को आग लगा जाते हो …

तेरे जिस्म का एहसास मेरे चादरों में धीमे धीमे उतरता है
मैं चादरें तो धो लेती हूँ पर मन को कैसे धो लूँ
कई जनम जी लेती हूँ तुझे भुलाने में,
पर तेरी मुस्कराहट,
जाने कैसे बहती चली आती है,
न जाने, मुझ पर कैसी बेहोशी सी बिछा जाती है …

कोई पीर पैगंबर मुझे तेरा पता बता दे,
कोई माझी, तेरे किनारे मुझे ले जाए,
कोई देवता तुझे फिर मेरी मोहब्बत बना दे...
या तो तू यहाँ आजा,
या मुझे वहां बुला ले...

मैंने अपने घर के दरवाजे खुले रख छोड़े है ... ।


***


तू

मैं अक्सर सोचती हूँ
कि,
खुदा ने मेरे सपनो को छोटा क्यों बनाया
करवट बदलती हूँ तो
तेरी मुस्कारती हुई आँखे नज़र आती है
तेरी होटों की शरारत याद आती है
तेरे बाजुओ की पनाह पुकारती है
तेरी नाख़तम बातों की गूँज सुनाई देती है
तेरी क़समें, तेरे वादें, तेरे सपने, तेरी हकीक़त ..
तेरे जिस्म की खुशबु, तेरा आना, तेरा जाना ..
एक करवट बदली तो,
तू यहाँ नहीं था..
तू कहाँ चला गया..
खुदाया !!!!
ये आज कौन पराया मेरे पास लेटा है... ।


***


बीती बातें

दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

जाने किसके इंतजार में
शब्बा ऐ सफ़र कटता रहा
जो गीत तुमने छेड़े थे
रात भर मैं वह गुनगुनाता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

शमा पिगलती ही रही थी
और दूर कोई आवाज दे रहा
जुबां जो न कह पा रही थी
अश्क एक एक दास्तां कहता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा


यादें पुरानी आती ही रहीं,
दिल धीमे धीमे दस्तक देता रहा
चिंगारियां भड़कती ही रहीं
टूटे हुए सपनों से कोई पुकारता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा

दिल बीती बातें याद करता रहा
यादों का चिराग रातभर जलता रहा
नज़म का एक एक अल्फाज़ चुभता रहा
दिल बीती बातें याद करता रहा ।

Thursday, December 4, 2008

राजभाषा कर्मियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ ....

राजभाषा-कर्मियों को आखिर अब तो मिलेगा न्याय

छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के आलोक में भारत सरकार के मंत्रालयों एवं अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषा कर्मियों को केंद्रीय सचिवालय हिंदी सेवा के कर्मियों के समतुल्य वेतन की सिफ़ारिश की गई थी । इसके बावजूद कई मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों में राजभाषा कर्मियों के लिए तदनुसार उचित वेतनमान लागू नहीं किए गए थे । इस संबंध में युग मानस समय-समय पर अपने पाठकों की जानकारी के लिए सामग्री देती रही । अब राजभाषा कर्मियों के लिए एक खुश खबरी है कि वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के कार्यान्वयन प्रकोष्ठ द्वारा इस संबंध में कार्यालय ज्ञापन जारी किया गया है । श्री आलोक सक्सेना, निदेशक (कार्यान्वय प्रकोष्ठ) के हस्ताक्षर से जारी व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार का कार्यलय ज्ञापन एफ.नं.1 1 2008 – आई सी, दि. 24 नवंबर, 2008 युग मानस के पाठकों, राजभाषा-कर्मियों की सूचना एवं उपयोगार्थ यहाँ प्रस्तुत है ।




आशा है, अब राजभाषा-कर्मियों को न्यायमूर्ति श्री कृष्ण की अध्यक्षतावाले छठे वेतन आयोग द्वारा संस्तुत वेतनमान मिलने अब अनावश्यक विलंब नहीं होगा ।

श्रद्धांजलि




राजभाषा की सेवा में शहीद हुए राजीव सारस्वत ...



राजीव ओमप्रकाश सारस्वत युग मानस के पाठकों के लिए राजीव सारस्वत के नाम से परिचित हैं । राज हाल ही मुंबई में ताज होटल में आतंकी हमलों के दौरान स्वर्गस्त हुए हैं । यह विडंबनात्मक घटना के दौरान वे राजभाषा सेवा के कार्य में ही लगे हुए थे । संसदीय राजभाषा समिति के दौरे के क्रम में आतंकी हादसे के दिन वे मुंबई के ताज होटल में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन के नियंत्रण-कक्ष में अपने दायित्व निभा रहे थे । सहृदयी कवि एवं विशिष्ट साहित्यिक कर्मी राजीव सारस्वत का निधन हम सबके लिए अत्यंत दुःखद घटना है । इन दुःखद क्षणों में हम सब उनके शोक-संतप्त परिवार के साथ हैं । राजीव आपके साहित्यिक साधना सारस्वत को हमें सदा याद करेंगे । ईश्वर आपको असीम शांति प्रदान करें । - डॉ. सी. जय शंकर बाबु



स्‍वर्गीय राजीव को श्रद्वांजलि


- डा.एस.बशीर,चेन्नै


राजीव तुम सदा अमर हो
ओम शब्‍द से वर्चस्व सज़ा कर
प्रकाश फैलाया था सभी ओर
सारस्वत कार्यों से उज़ागर
कीर्ती प्रतिष्ठा को गरिमा प्रदान कर
पुण्यात्मा बन क्षितिज़ में विलीन
कोलाहल से दूर होकर
शांति यात्रा पर चल बसे
मिले अगणित धैर्य परिजनों को
आपके उसूल, उन्हें मिसाल बने
जीवन सदा सरताज़ रहें।


सक्रिय साहित्यकार राजीव सारस्वत की एक कविता युग मानस में यहाँ प्रकाशित हुई है और उनके विचार यहाँ प्रकाशित हुए हैं


राजीव सारस्वत जी के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट करने के लिए इच्छुक मित्र Comments में अपने विचार शामिल कर सकते हैं । अथवा यहाँ लिख सकते हैं । आपके विचार युग मानस में तत्काल प्रकाशित हो जाएंगे । Friends of Rajeev Saaraswat may express their condolences here or may send by e-mail to yugmanas@gmail.com. Their views will be published in Yug Manas. - सं.