Friday, July 24, 2009

बाल दोहे





पेंग्विन सबकी मीत है


- आचार्य संजीव 'सलिल'


बर्फ बीच पेंग्विन बसी, नाचे फैला पंख ।
करे हर्ष-ध्वनि इस तरह, मानो गूँजे शंख ।।


लंबी एक कतार में, खड़ी पढ़ाती पाठ ।
अनुशासन में जो रहे, होते उसके ठाठ ।।


श्वेत-श्याम बाँकी छटा, सबका मन ले मोह ।
शांति इन्हें प्रिय, कभी भी, करें न किंचित क्रोध ।।


यह पानी में कूदकर, करने लगी किलोल ।
वह जल में डुबकी लगा, नाप रही भू-गोल ।।


हिम शिखरों से कूदकर, मौज कर रही एक ।
दूजी सबसे कह रही, खोना नहीं विवेक ।।


आँखें मूँदे यह अचल, जैसे ज्ञानी संत ।
बिन बोले ही बोलती, नहीं द्वेष में तंत ।।


माँ बच्चे को चोंच में, खिला रही आहार ।
हमने भी माँ से 'सलिल', पाया केवल प्यार ।।


पेंग्विन सबकी मीत है, गाओ इसके गीत ।
हिल-मिलकर रहना सदा, 'सलिल' सिखाती रीत ।।


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