Thursday, November 19, 2009

कविता



मेरा घर



- निर्मल एम. रांका, कोयंबत्तूर



अणुव्रत एक ऐसा घर बनाना चाहता है
जिसकी नींव में नैतिकता हो
जिसमें संयम की सिमेंट लगी हो
प्रामाणिक पत्थरों से निर्मित हुआ हो
जिसकी छत चरित्र से ढकी हुई हो
जो घर आचार-विचार के खंभों पर खड़ा हो
उस घर के दरवाजे सबके लिए खुले हो
खिड़खियों से अणुव्रत गीतों की स्वर लहरी गूंजती हो
घर की दीवारों पर प्रेक्षाध्यान व जीवन विज्ञान के चित्र हो
घर में पीने के लिए गंगा यमुना का पानी हो
खेत खलिहान में उपजा हुआ शुद्ध अन्न का भोजन हो
चारों तरफ़ हरियाली हो
जिस पर शांति और अहिंसा की वर्षा हो
सादा जीवन उच्च विचार उसका श्रृंगार हो
ऐसा मेरा घर हो ।

No comments: