Thursday, January 21, 2010

कविता


बेटियां


- डॉ. एस. बशीर, चेन्नै.



बेटियां…… घर - घर का साज शिंगार हैं
दर - दर महकता, बसंत बहार हैं
झर झर बहती प्‍यास बुझाती अमृत की धार हैं
झिलमिल हीरे-सोने का बहुमूल्‍य हार हैं
ये गुल नहीं गुलजार हैं
बेटियों घर में खुदा का बख्‍शा, बेमिसाल उपहार हैं
बेटियां……..
मुहब्‍बत का इज़हार हैं
ममता का पारावार हैं
समता का पतवार हैं
सेवा का अवतार हैं
बेटियां जहां हो………
हर घर में, हर दिन, त्‍यौहार ही त्‍यौहार है।
बेटियां…….
ये परिवार का दुलार हैं
समूचे दौलत के हकदार हैं
सुख दुख में भागीदार हैं
सरगम का मलहार है
जिस घर में बेटियां हो तो
बरकत व शफाएं-फरिश्‍तों की भरमार हैं।

बेटियं आज ………
बेटों से भी आगे बढ़ रही हैं
सभी क्षेत्रों में विकास कर रही हैं
माता-पिता गुरुजनों का नाम रोशन कर,
वतन पर मर मिटने को तैयार हैं।
बेटियां सिर्फ घर परिवार के ही नहीं
बेटियां इनसानियत की लाज़ हैं
बेटियां हमेशा……… गौरवशाली इतिहास का साज़ हैं
बहुमूल वक्‍त का राज़ है
भारत वर्ष ताज़ हैं ।
हर युग में सरताज़ है।
हर युग में सरफराज़ हैं।।
गरिमामय देश की, कौमी का एकता की, आवाज़ है।

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