Wednesday, March 14, 2012

कविता - अनुरोध

अनुरोध 










- महेंद्रभटनागर

परिपक्व आम्र हूँ —

तीव्र पवन के झोंकों से
कब गिर जाऊँ!
आतुर है
धरती की कोख
               प्रसविनी,
शायद —
जीवन फिर पाऊँ!

आया तो
और मधुर रस दूंगा,
बरस-बरस दूंगा!

अपने प्रिय सपनों में
रखना मुझे सुरक्षित,
भूली-बिसरी यादों में
चिर-संचित!¤

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DR. MAHENDRA BHATNAGAR

Retd. Professor

110, BalwantNagar, Gandhi Road,GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIAPh. 0751- 4092908

E-Mail : drmahendra02@gmail.com

http://pustakaalay.blogspot.com/2011/04/0.html

1 comment:

dr s. basheer said...

जीवन की क्षणभंगुरता व कर्तव्य बोध को दर्शानेवालीआप की चोटीसी मार्मिक कविता -अनुरोध -अत्यंत सारगर्भित है शुभ कामनाए