Tuesday, June 19, 2012

लघुकथा


सोच

- रमेश यादव

न जाने क्यों आज की शाम अजय को बोझिल-सी लग रही थी. वैसे तो उसे खुश होना चाहिए था, क्योंकि छ्ह महीनों बाद वह बँगलूरू से मुँबई अपने घर लौट रहा था, और उसकी शादी की बात भी चल रही थी, पर अजय नर्वस हो रहा था. उसके आने की खबर से घरवाले काफ़ी प्रसन्न थे. यह इस बात का द्योतक भी था कि वह घरवालों के इस फैसले से सहमत है .

सारे जरूरी कामकाज निपटाकर शाम को अपने माता-पिता और बहन के साथ बोरीवली जाने के लिए वह तैयार हो गया , आखिर लड़की देखने का कार्यक्रम जो बना था. देखा जाए तो आज का दिन उसके लिए बड़ा खास था, इसीलिए तो उसे बँगलूरू से बुलाया भी गया था. आफीस से छुट्टी लेना उसके लिए टेढी़ खीर थी, नाको चने चबाने जैसा था ! पर क्या करे पापा का बुलावा ही इतना आग्रहभरा था कि वह चाहते हुए भी टाल न सका. वह जानता था कि बास से छुट्टी माँगने का मतलब है उसकी खरी –खोटी सुनना. उसका यह अंदाज सही निकला. बडे़ ना - नुकुर के बाद आखिर पांच दिन की छुट्टी मंजुर हुई.

खैर लड़की देखने का कार्यक्रम तो संपन्न हो गया. रिश्ता जाति- बिरादरी से था, जो आजकल मुश्किल होते जा रहा है ! लोग बडे़ खुश थे. अजय के माता-पिता को लड़की बहुत पसंद थी. उसकी बहन अनिता भी इस रिश्ते से खुश थी. अजय के पिता राजेश्वर मेहरा सरकारी बैंक के बडे़ पद से पिछले साल ही रिटायर्ड हुए थे और वे लड़कीवालों को अच्छी तरह से जानते थे. रिश्ता भी अच्छा था. लड़की के पिता हर्दयाल बजाज जी रेल के रिटायर्ड अधिकारी और माँ रिटायर्ड शिक्षिका है .उनकी अच्छी खासी पेंशन है. अपनी इकलौती बेटी ‘जोया’ को बड़े लाड़– प्यार से उन लोगों ने पाला था. कानवेंट में पढ़ी , लंबी, गोरी, छरहरी, स्मार्ट नौकरी पेशा इंजीनियर जोया आधुनिक खयालों की है, उसकी तनख्वाह भी अच्छी है. बिजनेस टूर के सिलसिले में देश–विदेश में आना जाना उसके लिए आम बात है. अत: मेहरा जी चाहते थे कि जल्दी से अजय का घर बस जाए और हाय प्रोफ़ाइल बहू घर आए.

बहरहाल दो दिन बीत गए. बजाज जी का फोन भी आ गया कि उन्हें और जोया को अजय पसंद है, पर मेहरा जी की अभी इस विषय पर अजय से खुलकर बात नहीं हुई थी, अत: उन्होंने एक दिन का और समय माँगा और फोन रख दिया. मौका देखकर आज मेहरा परिवार ने अजय से इस बात का जिक्र छेड़ ही दिया.

अजय ने घरवालों की राय जाननी चाही. सबने एक सुर में हामी भर दी. “ जोया हम सबको पसंद है”. अजय की माँ तो लड्डू का बाक्स लेकर ही बैठी थी, उसे सिर्फ बेटे के हामी का इंतजार था. आज तक वह घरवालों की हर उम्मीद पर खरा उतरा था. उसकी बहन आँखों में सतरंगी सपने संजोए बैठी थी, पिताजी नाक से चष्मा ऊपर करते हुए अपनी छड़ी को सहलाते हुए अजय की “हाँ” सुनने के लिए आतुर हो रहे थे. सबको उस प्यारी –सी खबर का इंतजार था, जो एक औपचारिकता मात्र थी.

“आप सभी की भावनाओं का मैं सम्मान करता हूँ. जोया वास्तव में सुंदर, करीयर ओरियंटेड स्मार्ट इंजीनियर है. आधुनिक और माडर्न खयालों की भी है.” अजय के मुख से इतना सुनते ही उसकी मम्मी ने लड्डू बाँटना शुरू कर दिया. अजय ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “ एकांत में जोया से मेरी जो बातेँ हुईं उससे मैं सँतुष्ट हूँ, वह मेरे लिए सुखद रही. मैं उसके सोच की कद्र करता हूँ . मैं खुद एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर ‘आई.टी.’ इंजीनियर 12 से 16 घंटे ड्यूटी करता हूँ, प्रोफेशनल हूँ. मेरे साथ जोया जैसी लड़कियाँ भी सहकर्मी के रूप में कार्य करती हैं, अत: मैं उनकी मानसिक सोच और भावनाओं से पूरी तरह वाकिफ़ हूँ. हम लोगों का जीवन यंत्रवत हो जाता है. टारगेट, प्रमोशन और सॅलरी के तनाव में हम लोग घर-परिवार और देश- दुनिया से कट जाते हैं. पापा ! मैं पैसा कमानेवाली, करीयर ओरियंटेड, प्रोफेशनल इंजीनियर नहीं, बल्कि, आप लोगों के लिए एक गृहलक्ष्मी जैसी बहू चाहता हूँ. जिसके पास इतना समय और संस्कार हो कि वो हम सबके बारे में सोच सके, हमें अपना समझकर हममें रच- बस सके . उसका दुःख हमारा और हमारा सुख उसका हो जाए. आपके पोता-पोती, आयाओं या नाना – नानी के रहमोंकरम पर नहीं, बल्कि माता- पिता की छ्त्र छाया में पले बढ़े . घर की रसोई और बगिया महके, फले- फूले. नए साज का झँकार हो. जोया के पास इतना वक्त ही कहाँ है ? उसे विदेश का आकर्षण अधिक है. देश –विदेश में मैं भी घूमता हूँ ,पर मैं अपनी मिट्टी का तिलक करता हूँ. पापा मैं उसके योग्य नहीं हूँ ! वह अपने विचारों से समझौता करने को तैयार है पर मैं उसके सपनों को मरने नहीं देना चाहता. आय एम सारी पापा, मैं अपनी ज़मीन से कटना नहीं चाहता ! फ्लाईट का वक्त हो रहा है, कुछ देर में मुझे निकलना होगा.”

481/ 161 – विनायक वासुदेव एन.एम. जोशी मार्ग
चिंचपोकली – पश्चिम,
मुंबई- 400011 फोन- 09820759088


1 comment:

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

सुन्दर यथार्थ परक लघु कथा !