Wednesday, September 11, 2013

कविता - वो लड़की...


कविता

वो लड़की...

आदिल रशीद 

वो लड़की क्या बताऊँ तुमको कितनी खूबसूरत थी
बस अब ऐसा समझ लीजे परी सी खूबसूरत थी

हवा के जैसी थी चंचल, नदी के जैसी थी निर्मल 
महक उसके बदन की ज्यूँ महकता है कोई संदल

सुनहरी ज़िंदगी के थे हसीं गुलदान आँखों में 
बसाये रखती थी साजन के जो अरमान आँखों में


वही जो आईने के सामने सजती संवरती थी
वो शर्मीली सी इक लड़की जो खुद से प्यार करती थी

वही जो आईने के सामने घूंघट उठाती थी 
उठा कर अपना ही घूँघट जो खुद से ही लजाती थी


वही जो फूल के जैसे ही हंसती खिलखिलाती थी
ये दुनिया खूबसूरत है वो हर इक को बताती थी 

ये दुनिया खूबसूरत है वो अब इनकार करती है 
वो लड़की आईने के सामने जाने से डरती है


ये शतरूपा की बेटी है, यही हव्वा की बेटी है 
यही ज़ैनब, यही मरयम, यही राधा की बेटी है 


जिसे अल्लाह ने पैदा किया है मर्द की ख़ातिर 
वो कितने दुःख उठाती है उसी हमदर्द की ख़ातिर 


सता कर जो भी मासूमों को खुद को मर्द कहते हैं
जो इन्सां हैं वो ऐसे लोगों को नामर्द कहते हैं

अब इन वहशी दरिंदों को यूँ गर्क़ ए आब कर दीजे 
सज़ा तेज़ाब की दुनिया में बस तेज़ाब कर दीजे 


ग़र्क़ ए आब = पानी में ग़र्क़ करना, पानी में डुबो देना 
आदिल =न्याय करने वाला 
 

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