Friday, November 22, 2013

सेंदिल कुमरन की लेखनी से एक नई कहानी - बेचारा... ! ?

कहानी
बेचारा... ! ?

-    एन. सेंदिल कुमरन, पुदुच्चेरी


                ‘‘बेटा, रवि तू स्कूल से वापस आ गया ?  इधर आ । दुकान से तेल खरीदकर जल्दी आ । खाना पकाना है न । मनीषा कहाँ है ? खेल रही है या सो रही है ?‘‘
                छोटा-सा घर, कमरा तो एक ही है । बिजली की बत्ती टिमटिमा रही है । शाम का समय, रसोईघर में मंद रोशनी में माँ रसोई बनाने में व्यस्त है, वह भी जल्दी-जल्दी, । कहने के लिए तो वह रसोई तो बना रही है, मगर उसके चेहरे से जान पड़ता है कि उसके विचार तो दूसरी तरफ़ हैं ।
                ‘‘अरे रवि, सुनता नहीं, जल्दी आ । वहाँ क्या कर रहा है तू ?‘‘
                ‘‘लिख रहा हूँ माँ । अभी आता हूँ ।‘‘
                रवि सरकारी स्कूल में पाँचवीं कक्षा पढ़ रहा है । वह स्कूल में दिया गया गृह-कार्य कर रहा था । माँ के बुलाने पर वह करते गृह-कार्य को जैसे के तैसे छोड़कर रसोईघर के अंदर झांकता है ।
                ‘‘पैसे दे दो माँ ।‘‘
     शाम का वक्त, वह छोटा-सा बच्चा लगभग आधे किलोमीटर दूर स्थित दुकान से तेल लाकर देता है ।
                ‘‘माँ लीजिए ......तेल लाया हूँ ।‘‘
                ‘‘इधर रखो और बाहर देखो कि नल में पानी आ रहा है या नहीं । ‘‘
                पहाड़ की तराई में स्थित उस गाँव में हरे-भरे बड़े-बडे़ गगनचुंबी पेड़ हैं । स्वच्छ हवा एवं रमणीय दृश्यों से भरे उस गाँव में केवल चार गलियाँ हैं, वह भी संकीर्ण । बड़ी-बड़ी गाडियाँ उन संकर गलियों में चल नहीं सकतीं । केवल दुपहिए वाहन ही आ-जा सकते हैं । तड़के पेड़ों के ऊपर से भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षियों का कलरव सुनने से जान पड़ता है कि सुख्यात गायकों ने  यहीं से ही गीतों का राग-लय लिया हो । इस गाँव की रमणीय प्रकृति के दृश्यों को देखने के बाद दूसरी चीज़ों की ओर आँखें नहीं जाएँगी । भूख-प्यास सब भूल जाएँगे । मानसिक क्लेश भी पता नहीं कहाँ छिप जाएगा । गीत और नृत्य सुनने-देखने के लिए रेडिया-टी.वी  की ज़रूरत नहीं । साक्षात् गीत और नृत्य का दर्शन सीधा कोयल और मोर से मिलता है । वहाँ के सुन्दर एवं रम्यमय वातावरणआनेवाले यात्रियों को  उतनी जल्दी वहाँ से वापस लौटने नहीं देता। औषधी युक्त दवा जैसी हवा अस्वस्थ भी स्वस्थ हो जाएँगे ।
                कई विशेषताओं से  युक्त उस गाँव में एक कमी है । वह है, गरीबी । गरीबी तो इतनी है कि लोग रोज़ी रोटी के लिए भी तड़पते हैं । गांधीजी देश के हित उपवास कर रहे थे, किंतु इस गाँव के लोग आज़ाद देश में किसके हित के लिए कई दिन कई बार उपवास रहते हैं । क्या सरकार इन लोगों के उपवास के वास्ते कोई खि़ताब देगी ?.. . . . . . . .
                 प्राकृतिक आपदाएँ बार-बार उस गाँव में मेहमान बन जाती है । उस समय सब गाँववासी शाकाहारी पशु बन जाते हैं, पौधे ही उनका आहार है । अपनी दयनीय स्थिति को कहकर सरकार से या दूसरों से हाथ पसारते नहीं । किसी प्रकार की चीज़ मुफ़्त में लेकर अपना शेष जीवन बिताने की आदत उनके वश में नहीं है ।  उस गाँव में वसन्त तो सदा होता है पर उनके जीवन में वसन्त कब आएगा ? ऐसा प्रश्न सब के मन में होता है । आधुनिक वैज्ञानिक युग में सभी जगह और क्षेत्र की उन्नति हो गई, किंतु अब भी ऐसे गाँव कितने पिछड़े पड़े हैं । सरकार और राजनीतिज्ञ पाँच सालों में एक बार उस गाँव का नाम याद करते और बाद में भूल जाते हैं । क्यों  याद रखेंगे ? याद रखना अच्छे आदमी का लक्षण नहीं है न ?
                ‘‘पानी आ रहा है माँ । किंतु भीड़ है ।‘‘ सारी गली के वासी उस नल में पानी के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं । गाँव की हरेक गली में केवल एक-एक सरकारी का आम नल है । एक दिन छोड़कर एक दिन शामको मात्र पेयजल के नल से पानी टपकने लगता है । उस गली के सब लोगों को उस नल से ही पीने का पानी ले जाना है । और कोई पेयजल की व्यवस्था वहाँ नहीं है । बारिश के समय हो या गरमी, एक सप्ताह तक भी वहाँ पेयजल मिलना टेढ़ी खीर है ।
                जब पेयजल मिलता है तभी लेकर सुरक्षित रखते हैं ।  वहाँ पेयजल के वास्ते लड़ाई भी होती रहती हैं । बलशाली उस लड़ाई में भाग लेते हैं और दुर्बल दूर से तमाशा देखते है । एक दिन नहीं पूरे साल ऐसा ही पेयजल के लिए लड़ाई-वड़ाई होती रहती है । पर अजीब बात यह है कि उस समय मात्र एक दूसरे से दुश्मनी होगी, उस जगह से हटते ही सब में मन-मुटाव खत्म हो जाती है । उस गाँव को आनेवाली कोई यात्री पीने के लिए किसी के घर जाकर पानी मांगने पर सहर्ष से जितना भी चाहे उतना देंगे, ‘अथिति देवो भव‘ को सार्थक साबित करते हुए ।
                ‘‘रवि तू जाकर पानी ला । अब तक तेरा बाप घर नहीं लौटा । ‘रोज़ बोलती रहती हूँ कि जल्दी घर आ जा। घर का काम भी देख लो। सुनता नहीं । रोज़ शामको शराब की दुकान में कमाये हुए पैसों में से आधा हज़म करता है । रोज़ी रोटी के लिए भी ऊपर-नीचे देखना पड़ता है । विधाता हमारे भाग्य पर क्या बदा है ? कौन जाने ?‘‘
                माँ, मुझे पढ़ना-लिखना है । मैं न जाऊँ पानी लाने...। वहाँ इतनी भीड़ रहती है कि मैं जल्दी लौट ही नहीं पाऊँगामनीषा को भेज दो न !‘‘
                ‘‘अरे, मनीषा तुमसे छोटी है । सात साल की बच्ची ।‘‘
                ‘‘माँ, मुझे स्कूल का गृह-कार्य करना है, पढ़े बिना जाऊँ, तो अध्यापक से खरी-खोटी सुननी पड़ेगी ।  अन्य दोस्त हँसी-मज़ाक करेंगे । मुझे शरम होगा । पहले से ही बाप के व्यवहार से मुझे अपना सिर नीचा करना पड़ता है ।‘‘
                ‘‘बेटा, जि़द न कर । माँ क्या करेगी ? मैं भी काम के वास्ते सुबह जाकर शाम को लौटती हूँ । मैं न जाऊँ, तो रसोई घर में बिल्ली सोएगी । हम सब को भूख से तड़पना पड़ेगा । कौन पूछेंगे ? सुनेंगे ? कोई जानना चाहेंगे हमारी स्थिति को ?‘‘
                महंगी दुनिया में हमारे जैसे परिवार के लोगों को दिनोंदिन अजीब-अजीब प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता हैै । घर के सभी कमाते हैं, तो घर निश्चिंत चलता है नहीं तो, नहीं ।
                रवि का परिवार निम्नमध्य श्रेणी का है । माँ नौकरी पर न गई तो घर का निर्वाह करना बहुत मुश्किल होता है । बाप को बुरी आदत लग गई । इकलौता बेटा-बेटी है । मासूम लड़के-लड़की अपनी छोटी उम्र में ही घर की स्थिति से अवगत हैं । बाप घर की देखभाल किए बिना कभी आता है और जाता है । घर में कौन खाते हंैं कौन नहीं ? बच्चे क्या करते हैं ? इसका उसे कोई परवाह नहीं । बाप पियवकड़ है । स्वादिष्ट भोजन चाहता है । इससे पति-पत्नी के बीच में बार-बार मुठभेड होता है । बच्चों के ऊपर भी  इसका कुप्रभाव पड़ता है ।
                रवि, माँ की अनुनय-विनय से विवश होकर पानी लाने जाता है । बेचारा लड़का, उसके कहे अनुसार पानी लाने में  देरी हो जाती है । आते ही खाए बिना सो जाता है ।  स्कूल के काम के साथ-साथ घर का काम भी करना है, तो रवि क्या करेगा ? उसके वश में कुछ भी नहीं है ।  पहले से ही वह दुर्बल है । गरीब परिवार में जन्मे उसको कहाँ मिलता है पौष्टिक भोजन ? पौष्टिक भोजन दिवा सपना है ।
                रात दस बजे का समय । चारों ओर सन्नाटा है.... । ‘दुर्गा ....... दुर्गा‘‘ रवि के पिता की आवाज़ ।
                दुर्गा दिन भर कडी मेहनत के नाते जल्दी सो गई । कभी-कभी अपना मन बहलाव के लिए बच्चों को पुरानी कथाएँ सुनाती । आज बच्चे जल्दी सो जाने के कारण वह भी सोे गई । पहाड़ की तराई में स्थित गाँव के नाते बार-बार बिजली की समस्या भी है ।
                बाप पुनः ज़ोर से, ‘‘दुर्गा ..... दुर्गा.....‘ कहाँ मर गई ? सुनता नहीं कि मैं इधर गला फाड़-फाड़कर चिल्लाता हूँ तू निश्चित सोती है ? उठ, किवाड़ खोलो ।‘‘
                दुर्गा अधखुले ही उठकर किवाड़ खोलती है । रवि के पिता मनिक अन्दर आते ही पत्नी को थप्पड़ देता है और गरजता है -
                ‘‘कब तक मैं बाहर खड़े होकर चिल्लाता हूँ, सुनाई नहीं पड़ता तुझे ? गला भी सूख गया है मेरा ।‘‘
                मनिक पूरे नशे में है । अभी दुर्गा बात करेगी, तो पूरे घर में शोरगुल होगा, ऐसा समझकर दुर्गा चुपचाप सहन करती है । फिर उसको  भोजन लाकर खिलाती है ।
                मनिक खाते-खाते खरी-खोटी सुनाता रहता है । बराबर नौकरी पर जाता नहीं, ऐसा जाने पर वह रुपया शराब की दुकान पर चला जाता है । इसे सोचते-सोचते दुर्गा ‘आधा हो गई‘। दुर्गा की आँखों की आँसू धीरे-धीरे बूँद, फिर धारा बन जाती हैं । वह रोज़ ‘मरकर जीती‘ है । ‘‘आदमी आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर‘‘ है । मनिक किस ढंग का आदमी है .....? विधाता ही जाने ।
                रोज़ दुर्गा मुँह अंधेरे उठती है । नित्य घर के काम के साथ अपने बच्चों को भी तैयार करके स्कूल भिजवाती है । फिर नौकरी के लिए चलती है, वह खाती है या नहीं भगवान ही जाने । यहीं उसकी दिनचर्या है । सब घर से निकलने बाद मनिक उठकर मन में लगन हो, तो काम के लिए जाएगा, नहीं तो घर में ही सोएगा । उसका स्वभाव है कि ‘घड़ी भी की बेशर्मी दिन भर का आराम‘ अर्थात् एक दिन काम करके नौ दिन बैठकर उसे खाएगा । किंतु रोज़ ठीक शाम के वक्त शराब की दुकान पर जाता है और खूब पीता है । रात दस बजे तक शराब की दुकान ही मनिक की शय्या बन जाती है ।
                घरेलू काम बोझ के कारण रवि ठीक-ठीक से स्कूल का गृह-कार्य नहीं कर पाता । कक्षा में वह डरकर बैठा रहता है कि अध्यापक कुछ डांट लगाएँगे ? उसका मुँह कलंकित रहता है । किसी सहपाठी से भी बात नहीं करता ।  रवि के कार्यकलाप से अध्यापक को मात्र नहीं, बल्कि सबको समझने में देरी नहीं हुई ।
                कहा जाता है न भाग्य अपना-अपना । वह बेचारा लड़का जोे परिस्थिति वश केवल एक अध्याय छोड़कर अन्य सभी अध्याय अच्छी तैयारी करके आने पर भी, उसका दुर्भाग्य यह है कि शिक्षक उस अध्याय से ही प्रश्न छेड़ता है, तो वह कैसा ठीक-ठीक उत्तर दे सकता है तब वह पाता है नाम ‘‘बुद्धु‘‘, ‘‘नालायक‘‘ । जो इसके उल्टे हैं, उनका भाग्य है कि शिक्षक केवल उस अध्याय से प्रश्न पूछने पर वे ठीक-ठीक उत्तर दे पाते हैं । तब वे छात्र पाते हैं, ‘‘शबाश‘‘, ‘‘अच्छा लड़का‘‘, ‘‘खूब पढ़कर आया है‘‘ । तब वह सबका प्रशंसनीय पात्र बन जाता है । यह तो विधि है, आश्चर्य की बात तो नहीं है । क्या इसे ही कहते हैं-‘‘उसका भाग्य अच्छा है, इसका भाग्य बुरा है ?‘‘
                आजकल यह भी गलत धाराणा हो गई कि अच्छे अंक पाने वाले सब विषय पर कौशल होंगे, जो अच्छे अंक नहीं पाते वे विषय पर निरा होंगे । अंक के आधार पर काम सौंपना कितना खतरनाक है । इसे अनुभवी से पूछने पर मालूम होगा ।
                अध्यापक रवि को उठाकर, ‘‘रवि तुम बोलो, क्या सब होमवर्क करके आए हो ?‘‘
                ‘‘जी नहीं,‘‘
                ‘‘तुम्हारी मुखाकृति से ही मैंने जान लिया कि तुमने होमवर्क नहीं किया । आगे भी तुम होमवर्क नहीं करोगे ?‘‘
                 ‘‘जी, अधिक घर का काम होने से वह काम करते-करते थककर जल्दी सो गया था। आगे से ऐसा नहीं होगा । इस बार मुझे माफ़ कीजिए सर ।‘‘
                ‘‘बुद्धु ...... बुद्धु ...... कितनी बार माफ़ करना है तुमको । सुनता नहींकिसी  लायक नहीं हो तुम ।‘‘
                सब के सामने अध्यापक गाली सुनाने से रवि से रह नहीं सकता । अनजान से अपने आप आँखों से आँसू बह निकलता है ।
                अध्यापक कड़ककर कहता है - ‘‘तुम्हारा स्कूल आना न आना बराबर है ।  तुम से अन्य बच्चे बिगड़ जाएँगे । कल से तुम घर का काम देख, व्यर्थ से क्यों आते हो स्कूल ?‘‘
                रवि ईमानदार लड़का है, नहीं तो दूसरे लड़के, जैसे कुछ-न-कुछ झूठ बोलकर बच निकल सकता है । सत्य का पुरस्कार उसे ‘‘बुद्धु‘‘.....‘‘नालायक‘‘ के रूप में मिलता है ।  आजकल का ज़माना ही ऐसा है ।
                रवि रोते-रोते घर लौटता है ।
                माँ पूछती है - ‘‘क्या रे, क्यों रो रहे  हो ? क्या हुआ‘ ?
                माँ भी थककर आने के कारण कड़क आवाज़ से पूछ बैठती है ।
                ‘‘कुछ नहीं माँ । कल से मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ।‘‘
                ‘‘क्यों ?‘‘
                ‘‘अध्यापक ने गाली सुनायी, और आगे यह भी कहा कि तुम नालायक... बुद्धु हो, कल से स्कूल नहीं आना ।‘‘
                यह बात सुनते ही दुर्गा की स्थिति ऐसी हो गई कि ‘तेल डालने से आग नहीं बुझती‘ । अब असमंजस में पड जाती है कि आगे क्या करना है ? अध्यापक से जाकर बात करने में भी डर है और चुप भी नहीं रह सकती ।
                दुर्गा मनिक से सारी बातें बताती है । और यह भी आग्रह करती है कि कल स्कूल जाकर अध्यापक से बात वह बात करें । मनिक सुने अना सुन बोलता है कि ‘‘‘नहीं.... नहीं... कल से रवि को भी साथ ले जाओ । काम पर लगाओ । नौकरी करने से कुछ रुपया मिलता है । स्कूल जाए, तो कौन देगा रुपया । पढ़कर यह क्या करेगा ? क्या कलेक्टर बनेगा ?‘‘
                आगे की कहानी वही जो आम ग़रीब परिवारों की है । उस बच्चे को  देखकर किसी के मन में यह सवाल पैदा हो जाना सहज़ है कि क्या बाल मज़दूर इस तरह ही पैदा होते हैं या पैदा किये जाते हैं ?
                   बेचारा रवि, श्यामपट के सामने बैठने के वय में खतरनाक मशीन के सामने बैठ रहा है ।
                रवि का भविष्य जीवन .......... ? ? ? अब ही वह बहुत दुबला और कमज़ोर है । क्या वह अच्छा नागरिक बन सकेगा ? बताते हैं कि आज का बालक कल का अच्छा नागरिक ।  क्या अब रवि बालक नहीं है ? क्या वह भविष्य में अच्छा नागरिक बन पाएगा ? क्या दस के उम्र में ही खतरनाक मशीनों के साथ उसे नाता बनाना है

                बाल मज़दूरी के लिए कौन जिम्मेदार हैं ? अध्यापक, पिता, माता, गरीबी, सरकार, परिरिथति या सारे । काल ही इसका जवाब दे सकता है । परंतु अब बेचारा रवि की स्थिति ...... ? ? ? ? ?  एक अच्छा, नेक, ईमानदार बच्चे के भविष्य प्रश्नार्थक बनती स्थिति में यह धरा भी निरा देखती ही रह जाती है ।

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