Monday, December 22, 2014

मनोभावों का जीवन्त वर्णन की अद्भुत कृति : ‘अलसा गया ख़ुदा’

पुस्तक-समीक्षा

मनोभावों का जीवन्त वर्णन की अद्भुत कृति : 
अलसा गया ख़ुदा



- अनिल प्रताप गिरी

कवयित्री शिवानी गौड़ कृत कविता संग्रह अलसा गया ख़ुदा चित्त के भावों को सहजतापूर्वक उद्रेक करने वाला एक उपादान कारण है, जिससे सहृदय त्वरित ही साधारणीकृत होकर अपने-अपने संस्कारों के आधार पर तादात्म्य स्थापित करते हुए रसचर्वण करता है। शिवानी ने अपने जीवन के अनुभवों को शब्दानुबद्ध करके काव्यात्मक शैली में सहजता से प्रस्तुत करने का एक सफल प्रयास किया है। जिसमें सामान्य प्रवृत्ति के सहृदय भी अपनी-अपनी भावनाओं का अनुशीलन करते हुए काव्यात्मक जगत में प्रविष्ट होकर स्व को विस्मृत कर देता है। इस प्रकार के विस्मरण का श्रेय निश्चित रूप से शिवानी के काव्यात्मक तूलिका को ही जाता है। गम को परिभाषित करते हुए अपनी कविता में वे कहती हैं कि-
ग़म कभी दिल के मेहमान नहीं होते
वो तो बाशिंदे होते हैं
जो अपना असबाब लेकर दिल में उतरते हैं
हँसने-रोने की वजहों का बिछौना बनते हैं...
ध्यातव्य है कि कविता-संग्रह की भावनाओं का गहराई अध्ययन करने से यह बात परिज्ञात होती है कि हिन्दी साहित्य जगत में मनोवैज्ञानिक विधा की भूमिका अवश्य होनी चाहिए जिसमें काव्य का मन-बुद्धि, चित्त अथवा अहंकार जैसी चित्तवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में वैज्ञानिक विधि से अध्ययन एवं विमर्श करना चाहिए, जिसकी दिशा में अलसा गया ख़ुदा एक प्रशस्त मार्ग प्रस्तुत करता है। इस तथ्य का प्रकटीकरण अधोलिखित कविता से स्वतः हो जाता है-
तेरा मन तेरी नहीं सुनता
मेरा मन मेरी नहीं सुनता
चल फूँक आते हैं इनको इकट्ठे कहीं
आधी राख तेरी
आधी मेरी
अब
सबकुछ
हमारा साझा है।
          यह कविता संग्रह मनोभावों का जीवन्त वर्णन करने के साथ साथ प्रकृति-चित्रण पर भी उतना ही बल देता है। मनोभाव एवं प्रकृति-चित्रण का मर्मस्पर्शी सम्मिश्रण कथ्य को सचित्र वर्णित करने में पूर्ण सफल हो जाता है, यह कवयित्री की अद्भुत प्रतिभा ही है जिसमें कारयित्री एवं भावयित्री दोनों का समन्वय है। अतएव यह काव्य कथ्य एवं शिल्प दोनों की दृष्टि से अत्यन्त प्रखर होगा, ऐसी मेरी शुभकामना कवयित्री एवं उसके द्वारा रचित काव्य दोनों को है। प्रकृत संकल्पना निम्नलिखित कविता से स्वप्रमाणित हो जाती है-
आँगन में बैठे इधर उधर
की देर सारी बातें करना
होंठों पे आई हँसी को
पकड़
चेहरे पे फैला देना
अलसाई दोपहर में छाँव तले
हँस-हँसकर आम चूसना
मटके के पानी को गरम बता
ठंडे पानी को मुनहार करना
गोंद में सर रखे
पंछियों के परों को गिनना
तुम्हारे ये सारे रूप रचे हैं मैनें
बस
रंग भरना बाकी है ।
काव्य-प्रेमियों और भावना को भाव देने वाले रसज्ञ चिंतकों को असीम अनुभूतियों की गंगा में डुबकी लगाने के लिए इस कृति की कविताओं को अवश्य पढ़ना चाहिए ।  इस कृति में कुल 90 कविताएँ हैं, जिनकी भाव-गरिमा और अनुभूतियों की गहराई एक से बढ़कर एक में नज़र आती है ।  आकर्षक रेख-चित्रों की प्रस्तुति से कृति को चार-चाँद लग गए हैं ।  भावमय काव्य सर्जना के लिए कवयित्री शिवानी गौड़ अभिनंदनीय हैं और कृति के प्रकाशन के लिए हिंदी-युग्म के आयोजक साधुवाद के पात्र हैं ।  सुंदर आवरण-चित्र के यशवंत नामदेव और कला-निर्देशन के लिए विजेंद्र एस विज को बधाइयाँ ।

कृतिअलसा गया ख़ुदा (कविता-संग्रह); ISBN: 978-93-81394-67-0; कवयित्रीशिवानी गौड़;  पृ.128;  मूल्य रू.150/-; प्रकाशकहिन्दी-युग्म , 1, जिया सराय, हौज खास, नई दिल्ली-110 016, ई-मेल – sampadak@hundiyugm.com, वेबजाल – www.hindyugm.com



समीक्षक का संपर्क सूत्र - सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी - 605 014

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