Tuesday, March 24, 2015

आधुनिक हिंदी कहानियों में चित्रित युवा मानसिकता

आलेख

आधुनिक हिंदी कहानियों में चित्रित युवा मानसिकता

-डॉ. रोहिणी पांड्यन, मदुरै

इलाहचन्द्र जोशी के शब्दों में आज के युग का कलाकार एक ओर जीवन की घोर मनावैज्ञानिक यथार्थता के प्रति जागरुक रहता है ।   दूसरी ओर जिस मनोविज्ञान को वह अपनाता है,  वह केवल जागृत मन अथवा मन की केवल उपरी सतह का मनोविज्ञान नहीं होता बल्कि अंतःस्थल की गहराइयाँ, गहन खाइयों, भयंकर चट्टानों प्रलयंकर तूफ़ानों,  निरंतर उलझती रहने वाली मानसिक गांठों के कारण उत्पन्न हाहाकारपूर्ण शून्यतम अवसादों,  विषयों तथा चित की अव्यवस्थित और असामंजस्यपूर्ण परिस्थितियेां से भली-भांति परिचित रहता है ।
मनोवैज्ञानिक कहानीकार मानव-मन के अदभुत संसार को अपने कहानी का विषय बनाता है और उसी से कथानक का ताना-बाना बुनता है ।  यह व्यक्ति की भौतिक और बाहय समस्याओं और संघर्षो और व्यक्ति की कुंठओं को अपने कहानी का विषय बनाता है ।  वह कुंठाओं को उजागर ही नहीं करता, वरन कुंठाओं के कारणों को भी खोज निकालता है और उसका विश्लेषण भी करता है ।  क्योंकि कुंठा व्यक्ति वर्तन को प्रभावित करती है ।  व्यक्ति के जीवन में अनेक इच्छाएं, आकांक्षाएं होती हैं और प्रत्येक का कोई न कोई लक्ष्य होता है ।  लक्ष्य की प्राप्ति में कोई बाधा उत्पन्न होने पर इच्छाओं तथा आकांक्षाओं की पूर्ति के अभाव में व्यक्ति कुंठित होता है ।  व्यक्ति के विकसन की विविध अवस्थाएँ होती हैं ।  शैशवावस्था, बाल्यवास्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था आदि ।  इसमें बाल्यावस्था में शारीरिक विकास का,  कुशोरावस्था में लैंगिक विकास का,  युवावस्था में सर्वांगीण परिपक्वता का तथा वृद्धावस्था शक्ति-क्षय का काम होता है। आनुवंशिकता, वातावरण, आत्मभाव, परिपक्वन, प्रयत्न, क्षमता प्रशिक्षण के कारण भी व्यक्ति कंठित होता है । व्यक्ति के विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार उसकी विभिन्न शारीरिक और मानसिक अपेक्षाएँ होती हैं । इसकी पूर्ति के अभाव में व्यक्ति कुंठित होता है जिसका प्रभाव उसके व्यवहार पर पड़ता है ।
किशोरावस्था के बाद व्यक्ति योवनावस्था में पदार्पण करता है । इस अवस्था में उसका सर्वांगीण विकास तथा परिपक्वन होता है । विविध अनुभवों से संस्कारों से संपन्न होकर सक्षम युवा बनकर बड़े आत्म-विश्वास के साथ वह जीवन का मार्ग क्रमण करने निकलता है । उच्च शिक्षा प्राप्त करना, व्यवसाय में सुस्थिर होना, विवाह करना, परिवार प्रस्थापित करना, एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में अपना उत्तरदायित्व स्वीकार करना आदि इस अवस्था के महत्वपूर्ण कार्य होते हैं । परंतु जब ये महत्वपूर्ण कार्य इस अवस्था में पूर्ण नहीं हो पाते या उनके पूर्ण होने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो कुंठा उत्पन्न होती है और व्यक्ति कुंठाग्रस्त होता है । युवा पीढ़ी हर काम चुटकी बजाकर कर लेना चाहती है और अपने मन मुताबिक करना चाहती है जब ऐसा नहीं हो पाता तो भग्नाशा की शिकार हो जाती है । ऐसे में यह पीढी या तो व्यसनाधीनता का शिकार होती है या आत्महत्या या अन्य कोई जघन्य अपराध करने को बाध्य हो जाती है । हिंदी के अनेक कहानीकारों में अनेक समस्याओं से झूझ रहे युवा पीढ़ी की मानसिकता केा ही अपने कहानी का विषय बनाया है ।
युवावस्था की सबसे बड़ी सार्थकता है कि वह पढ़-लिख कर किसी रोजगार में लग जाय। उसी में उसके और उसके परिवार की मर्यादा है । बेरोजगारी का संसर्ग व्यक्ति, परिवार, शिक्षा, सामाजिक, सुरक्षितता, सांस्कृतिक जीवन आदि सभी से होता है । परिणामतः युवा मन में एक गहरी निराशा और आक्रोश की भावना उत्पन्न हो गई है । यह हताशा जड़ मानसिकता तथा विषमायोजन का कारण बनती है । परिणामतः वैचारिक क्षमता नष्ट हो जाती है । कई गलत समझौते करने के लिए मजबूर होता है । अपराध की ओर प्रवृत होता है । बेरोजगारी से केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि परिवार, समाज तथा देश भी प्रभावित होता जा रहा है ।
जिंदगी और गुलाब के फूल’ कहानी में सुबोध का अपने परिवार में विशिष्ठ स्थान था । लेकिन जीवन के एक मोड़ में उसकी नौकरी छूट जाती है । जिसके कारण उसे माँ और बहन की उपेक्षा सहनी पड़ती है । सुबोध अपनी असफलता, हीनता और नैराश्या की भावना के कारण माँ और बहन के साथ आक्रामक व्यवहार करता है ।
मैं इस बात को स्वीकार कर लूँ कि मैं जिंदगी में फेलियर हूँ कम्पलीट फेलियर ।  कुछ नहीं कर सका ।  जैसे मेरी जिंदगी में अब फुटबॉल लग गया है । अब ऐसे ही रहूँगा ।
गुलजी गाथा’ कहानी के गुलजी का विवाह बेरोजगारी के कारण नहीं हो पाता तो वह भग्नाशा का शिकार होता है । ‘हीरकी, मुझे मजुरी करनी है । देखो मैं कमाता नहीं हूँ न इसलिए मेरा व्याह नहीं हो रहा है ।’
युवावस्था में स्त्री-पुरुष एक दूसरे के प्रति स्वभावतः आकर्षित हो जाते हैं । प्रेम करने लगते हैं - साथ-साथ जीने और मरने की कसमें खातें है और विवाह भी करना चाहते हैं । किसी कारण यदि यह नहीं हो पाता, तो दोनों का जीवन तनावों एवं संघर्षों से गुजरने लगता है । ‘चांद चलता रहा कहानी में रोहिणी’ अरविन्द के साथ प्रेम के सपने देखा करती थी । अरविन्द ने एक स्थिति में विवाह से पूर्व रोहिणी से समर्पण चाहा था । लेकिन रोहिणी ने मना कर दिया था । उस घटना के बाद रोहिणी टूट जाती है और भीतर से खोखली होती जाती है । रोहिणी कई पुरुषों के संपर्क में रहकर अरविन्द से संबंधित उस दुखद घटना को अपने अन्दर ही शमन कर देती है । इस प्रकार यहाँ पर शमन रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है । इस तरह से वह अरविन्द को अस्वीकार करने की वजह से अपने से बदला लेती है । यहाँ पर प्रतिक्रिया निर्माण रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है । ‘हर बार मैं किसी की शैया पर सोती हूँ, मेरा एक अंश मर जाता  है । मुझे मालूम है कि लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं.....-इस तरह मैं अपने आप से बदला लेती हूँ ।’ - 6 यहाँ विस्थापन मनोरचना है । ‘खुनरंगी मिटटी’ में फजा सज्जाद से प्यार करती है किन्तु फजा के परिवार वाले सज्जाद को जान से मार देते हैं । फज़ा सज्जाद की मौत से विक्षिप्त हो जाती है । वह केवल काले वस्त्र पहनती है । रेगिस्थान के निर्जन जंगलेां में भटकती रहती है । वह कहती है - ‘बस , अब खुदा मुझे उठा ले तो बेहतर हो । अम्मा जिन जल्लदों ने मेरी जिंदगी को तबाह कर डाला, मैं उनके लिए क्यों जिन्दा हूँ, ऐसी क्या मजबूरी है ।’ ‘मिस प्रभु और उसका फोड़ा’ कहानी की मिस प्रभु मदन से प्यार करती है किन्तु मदन धोखा दे देता है तो कुंठित हेा जाती है । मिस प्रभु को एक फोड़ा हो जात है पर वह उस फोड़े का इलाज नहीं करना चाहती । वह कहती है - ‘एक बार पहले भी मेरी दूसरी जाॅंघ में ऐसा ही फोड़ा हुआ था, जिससे मैं घबरा गयी थी । पूरे एक माह के बाद भरा था । देखो, यह रहा उसका दाग ।’  पहली बार फोड़े का इलाज  मदन करता है । मदन के प्रति अपने आक्रोशा केा वह अपने फोड़े के द्वारा व्यक्त करती है । यहां विस्थापन रक्षायुक्ति है ।
मोहबंध’ कहानी में अचला और नीलू देानों एक दूसरे के करीब दोस्त है । नीलू कई पुरूषों संपर्कां में खुलती रही है। ठीक इसके विपरीत अचला है जो एक व्यक्ति से जुड़ती और उसके टूटने पर अपने में टूटती ही चली जाती है। जीवन के एक मोड़ पर अंचला ने पाया कि उससे जुड़े हुए देवेन को नीलू ने बलात अपनी ओर खींच लिया है । इस घटना के बाद अचला भीतर से पूरी तरह टूट जाती है । लेकिन वह अपनी परिस्थिति से समझौता कर लेती है । इस प्रकार यहाँ पर समायोजन की भावना का प्रयोग हुआ है । ‘और तब नीलू जो कुछ भी उस के साथ किया, उस की पीड़ा अचानक मिट गयी । वह नीलू से बहुत बड़ी, बहुत ऊपर हो गयी । वह मुक्त हो गई उस शाप से, उस कचोट के बंधन से क्योंकि राजन की आंखों ने उससे कहा है कि वह सचमुच सुन्दर है ।’
                ‘नींद’ कहानी में नायिका अपने प्रिय प्रेमी से बिछड़कर बहुत दुखित होती है और तनाव से बचने के लिए वह कभी तेा नींद की गोली का सहारा लेती है  या तो कभी पर पुरुष से संबंध स्थापित करती   है । यहाँ प्रतिक्रिया निर्माण रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है । ‘नहीं, मै रूग्ण नहीं हूँ, न मुझमें में कोई मानसिक विकृति है। वह डाक्टर मेरा मनोविद झूठ कहता है ............ मैं केवल साथ ढूंढती हूँ ।’
                ‘मुझे छूना मत’ कहानी में नीच जाति की मरवणकी ब्राहमण कुल के लटूड़े से प्रेम करती है किन्तु गांव वाले इस निश्ते को नहीं मानते और लटूड़े का विवाह कहीं और तय कर देते हैं जिससे मरवणकी कुंठित हो जाती है और सारा जीवन कुंठा के साथ अकेले जीती है । वह कहती है - ‘मुझे मत छूना । मै उस मर्द का छूना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती जो प्रेमहीन है । ............तू मुझे अब बिलकुल पराया मर्द लगता है । इतना पराया कि तेरी दीठ से मेरा मन गंदा होने लगता है चला जा । ’
        विवाह इस अवस्था का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है । विवाह के गठबंधन में नर और नारी बंधकर जन्म जन्मांतर के साथी बन जाते है । विवाह के बंधन में बंधने के पश्चात उनके पारस्परिक स्नेह और प्रेम दाम्पत्य जीवन में मृदु मुस्काने बिखेरते हैं । समाज की गतिशाीलता, आधुनिक सभ्यता का व्यामोह, औद्यागिक व प्रौद्योगिक विकास, शिक्षा का प्रसार, अस्तित्ववाद का प्रसरण, अर्थमूल-दृष्टि आदि के कारण निरंतर दाम्पत्य संबंधों में परिवर्तन हो रहा है । आधुनिक युग में दाम्पत्य जीवन देह के स्तर तक सीमित होकर रह गया है । पति-पत्नी के अपने-अपने स्वतंत्र विचार व्यक्त होने लगे हैं । परिणामतः वैवाहिक सूत्र के पवित्र बंधन में बंधे रहने पर भी वे अपने अपने मरुस्थल मे ंभटक रहे हैं । जिसके कारण कुंठा और मनोविकृति का शिकार हो रहे हैं ।
       ‘प्रतिध्वनियाँ’ कहानी में वसु एक ऐसी स्त्री है जो न पति से, न सास से और न अन्य सदस्यों से जुड़ पाई । पति के संपर्क में उसे नागपाश की घुटन होती है । वह हमेशा अपने पति के अंकुशों में न रहकर उनके विरुद्ध काम करना चाहती है । वह स्वतंत्र होकर पति की सत्ता को नकारणा चाहती है । यहाँ नकारात्मक रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है । पति श्यामल के अंकुशों से मुक्ति पाने के बाद वसु कई पुरुषों को संपर्क मंे आती है । लेकिन हमेशा इन सब के बीच भी वह अपने आपकों अकेला महसूस करती है और उसे अपना जीवन खोखला और अर्थहीन लगता है । वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है । यहां पर रूपातंर रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है ।
        ‘स्वीकृति’ कहानी में सत्य जपा से विवाह अपनी महत्वकाक्षाओं की पूर्ति के लिए करता है । क्योंकि वह विदेश जाना चाहता है । विदेशा पर वह जपा की भावनाओं की बिलकुल कदर नहीं करता । जिससे जपा भग्नाशा का शिकार होती है । नैराश्य की भावना के कारण वह वाल की ओर आकर्षित होती है । यहाँ स्थानान्तरण रक्षायुक्ति का प्रयोग हुआ है ।
        ‘ट्रिप ’ कहानी में पति अपनी पत्नी की संवेदनाओं, भावनाओं और इच्छाओं की अवहेलना कर हमेशा अपने ही काम में व्यस्त रहता है । वह बच्चों को भी बोर्डिंग स्कूल भेज देता है । अकेलेपन, ऊब अैर वितृष्णा आदि के कारण कुंठित होकर वह नशीले पदार्थो का सेवन करती है । यह पर वास्तविकता से पलायन की रक्षायुक्ति का प्रयोग लिया गया है । ‘वितृष्णा’ कहानी में शालीनि और दिनेश के संबंधों के बीच एक गहरी खाई बन जाती है और उनके जीवन की वह खाई उनके जीवन के अंतिम पड़ाव तक कायम रहती है । विवाह के आरंभिक दिनों में दिनेश शालीनि को वक्त नहीं दे पाता है जिसके कारण कुंठित होकर शालीनि दिनेश के सामने जीवन भर चुप्पी साधे रहती है ।
युवावस्था एक ऐसी सशक्त अवस्था है जिसमें पल-पल प्रगति के विचार उभर कर आते हैं । यदि उस प्रगति के पथ पर वे असफल होते हैं तो सशक्ति की भावना से वंचित रहकर अपने आपको कमजोर या शक्तिहीन समझने लगते हैं । जिसके कारण कुंठा, मनोविकृति, व्यसनाधीनता आदि विक्षिप्तियों का शिकार होते हैं । इसी अवस्था में यौनाकांक्षाएँ अधिक होती है जिसके परिणामस्वरूप दमित वासना उत्पन्न होती है । प्रेम की क्रिया दमित होती है । आज की  युवा पीढ़ी बहुत स्वार्थी हो गयी है वह केवल अपने इच्छाओं, आकांक्षओं, भावनाओं और महत्वकांक्षाओं को ही महत्व देती है । उसके जीवन में देश, समाज, परिवार यहां तक अपने माता-पिता की भी कोई अहमियत नहीं रह गयी है।  युवा पीढ़ी की इसी स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए आधुनिक कहानीकारों ने उन पर लेखनी चलायी है ।  युवा पीढ़ी देश का मार्गदर्शक है अतः उसे अपने कर्मो से परिवार और समाज को सुदृढ़ बनाते हुए देश को प्रगति के मार्ग पर ले जाना चाहिए ।

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