Saturday, September 10, 2016

जयप्रकाश कर्दम का छप्पर में दलित अस्मिता की खोज

आलेख
जयप्रकाश कर्दम का छप्पर में दलित अस्मिता की खोज
रेजी जोसफ
आजादी के बाद स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के मूल्यों को स्थापित करने का महान प्रयास है जयप्रकाश कर्दम के छप्पर नामक उपन्यास। इसमें मानवीय भावों और एहसासों का संस्पर्श है। वे इस उपन्यास के माध्यम से ब्राह्मणवाद के मुखौटे को उखेडने की कोशिश करते हैं जो हमारे समाज को खोखला बनाये रखने के लिए सक्रिय है। इस उपन्यास के मुख्य पात्र चंदन और उसके पिता सुक्खा ब्राह्मणवाद की साजिशों के शिकार हैं और पूरे जीवनकाल में उनके द्वारा बनाये गये षडयंत्रों को सहते रहते हैं। परंतु चंदन के नेतृत्व में सामाजिक बदलाव के लिए की गयी आंदोलनों की व्यापक प्रतिक्रिया सारे समाज में व्याप्त हो जाती है। फलतः भ्रम और भ्रांति के शिकार लोग यथार्थ को पहचानते हैं और जन्म के आधार पर व्यक्ति को श्रेष्ठ या हीन मानने की भावना कम होने लगते हैं। शनै – शनै समाज में यह भावना पैदा होने लगती है कि जन्म से नहीं बल्कि अपने गुण-धर्म, योग्यता आदि के आधार पर ही मनुष्य श्रेष्ठ और हीन बनता है। जो मनुष्य शील और मर्यादाओं का पालन करता है, ईमानदार और सत्यनिष्ठ हो, छल और कपट से दूसरों को धोखा न दें, मेहनत का फल खाता हो वही समाज में श्रेष्ठ बनता है। जो मनुष्य बुरे व्यवहार करते हो, बईमान हो,छल कपटी हो, दूसरों की मेहनत की कमाई खाते हो, वह हीन है। यह संदेश छप्पर उपन्यास के माध्यम से पेश करने में कर्दमजी सफल हो गये हैं। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में बंधे हुए हैं। किसी न किसी धार्मिक अनुष्ठान से उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है और नींद में जाते वक्त तक मनुष्यों के द्वारा निर्मित अंधविश्वासों की जंजीरों में जकडे हुए हैं। कुछ लोगों ने बदलाव की हवा को पहचाना और उन्होंने पूजा-पुरोहिताई का धंधा छोड दिया और दूसरे धंधों की ओर उन्मुख हुए। इसी कारण ब्राह्मणवाद के इतने गहरे जाल के बीच भी चंदन,सुक्खा,हरिया आदि पात्रों को कोई खरोच तक नहीं आती। वे बिना कुछ खास प्रयास किये ही जीते हैं ,सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं और नये समाज का निर्माण करने में सक्षम हो जाते हैं। इस उपन्यास के माध्यम से वर्णव्यवस्था के खोखलेपन को दिखा कर चंदन के मुँह से कहलवाया है कि एक तरफ तुम हो और दूसरी तरफ वे लोग हैं जो किसी जाति में जन्म लेने से श्रेष्ठ समझे जाते हैं, चाहे वे कुरूप और आचरण से गिरे हुए हो। वे लोग हैं जो बंगलों में रहते हैं,कारों में घूमते हैं जिनकी तिजोरियाँ नोटों से भरी हैं। जो तुम्हारी कमर तोड मेहनत के बदले तुम्हें उचित मजदूरी तक नहीं देते। ठाकूर साहब की मान्यता है कि दलित समाज के ये लोग पढ-लिख कर ऊँचे ओहदों तक पहुँचने लगेंगे तो हमारी श्रेष्ठता कहाँ रह जायेंगी। यदि ये लोग स्वावलम्बन और स्वाभिमान का जीवन जीने लगेंगे तो फिर हमारा महत्व क्या होगा। इसलिए ठाकुर हरनाम सिंह अपनी बेटी रजनी को समझाते हैं – इतिहास और परम्परा से समाज में हमारा वर्चस्व रहा है। हमारी अस्मिता इसी में है। अस्मिता के बिना मनुष्य जिंदा नहीं रह सकता।
      छप्पर उपन्यास में हरिया और उसकी पुत्री कमला,  सुक्खा और उसका पुत्र चंदन, सवर्ण समाज के प्रतिनिधि ठाकुर हरनाम सिंह की पुत्री रजनी आदि के सहयोग एवं आत्मिक जुडाव से   सामाजिक बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। छप्पर के माध्यम से दी गयी आधुनिक सामाजिक दृष्टि वर्तमान काल में भी प्रासंगिक है। ग्रामीण-रामप्यारी ,चंदन-रजनी-कमल, रामहेत- नंदलाल-रतन, ठाकु हरनाम सिंह- काणा, पंडित सेठ दुर्गादास जैसे पात्र दलित एवं सवर्ण समाज के हैं लेकिन सामाजिक बदलाव को स्वीकार करते हैं। उपन्यासकार ने रजनी के मुँह से कहलवाया है- संविधान के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान एवं स्वाभिमानपूर्वक जीने का हक है। यदि चंदन पढ-लिख कर काबिल बनना चाहता है तो यह उसका संवैधानिक हक है, इस पर किसी को ऐतराज क्यों होना चाहिए ? इस बात पर तो समूचे गॉव को गर्व होना चाहिए। सुक्खा यदि अपना पेट काट कर अपने बेटे को पढाना चाहता है तो उसको ऐसा करने से क्यों रोका जाये ?’ जब तक दूसरे लोग भी सुक्खा की तरह अपने बच्चों को काबिल बनाने की ओर ध्यान नहीं देंगे तब तक  न देश का उत्थान होगा और न समाज का। उपन्यासकार सवर्ण समाज की रजनी के माध्यम से स्वतंत्र भारत की आधुनिक नारी तथा संविधान में प्रत्याशित स्वतंत्रता, समानता, बंधुता एवं धर्मनिरपेक्षता के समाज की संरचना को स्वीकार करने की आशा करते हैं।
संदर्भ ग्रंथ –
o    भारतीय दलित साहित्य : परिप्रेक्ष्य – अजय नवारिया।
o    दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र : ओमप्रकाश वाल्मीकि।
o    दलित साहित्य सृजन के संदर्भ : जयप्रकाश कर्दम।
o    दलित साहित्य का सौंदर्यबोध : रामअवतार यादव।
o    दलित अस्मिता और हिंदी उपन्यास : डॉ. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी।


रेजी जोसफ कर्पगम विश्वविद्यालय कोयम्बत्तूर,तमिलनाडु में डॉ.के.पी. पद्मावति अम्मा  के निर्देशन में पीएच.डी. उपाधि के लिए शोधरत हैं।

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